DRS की विवादित शुरुआत: जब क्रिकेट की आत्मा दांव पर लगी थी

2006 में DRS प्रणाली का प्रस्ताव, जिसने क्रिकेट में तकनीकी क्रांति की नींव रखी, लेकिन इसने ICC और क्रिकेट की पारंपरिकता के बीच एक विवाद भी खड़ा किया। जानिए कैसे इसने क्रिकेट को बदल दिया।

DRS की विवादित शुरुआत जब क्रिकेट की आत्मा दांव पर लगी थी
DRS की विवादित शुरुआत जब क्रिकेट की आत्मा दांव पर लगी थी

कैसे और क्यों घीड़ा DRS विवादों के बीच

6 जून, 2006 की एक सामान्य सी दिखने वाली अखबार की तारीख। उस दिन कुछ महत्वपूर्ण हो रहा था, लेकिन ऐसा कुछ नहीं था जिससे क्रिकेट प्रशंसकों को बड़ा झटका लगे। कहीं न कहीं, उस अखबार के खेल अनुभाग के कोने में एक छोटा सा लेख था, जिसमें लिखा था कि ICC अपनी जनरल मीटिंग करने जा रहा है। उस मीटिंग में एक ऐसा विषय था, जिसने क्रिकेट के खेल को हमेशा के लिए बदल दिया।

वह मुद्दा था, DRS – यानी ‘Decision Review System’, जिसे शुरू में बस “सुपर अपील” के रूप में देखा गया। क्या खिलाड़ियों को सीधे तीसरे अंपायर से अपील करने का अधिकार मिलना चाहिए? यह सवाल ही वह चिंगारी थी, जिसने आने वाले वर्षों में क्रिकेट की पारंपरिकता और आधुनिकता के बीच की लड़ाई को जन्म दिया।

DRS की शुरुआत: परंपरा बनाम आधुनिकता

1992 में पहली बार टीवी रीप्ले का इस्तेमाल हुआ, और तब से एक समूह लगातार मांग कर रहा था कि क्रिकेट में तकनीकी हस्तक्षेप बढ़ाया जाए। लेकिन, क्रिकेट के पारंपरिक रक्षक इसे दबाते रहे। उनका तर्क था कि तकनीक खेल की खूबसूरती और मानवीय तत्व को खत्म कर देगी।

हालांकि, जैसे-जैसे अन्य खेलों में तकनीकी बदलाव आए, क्रिकेट को भी समय के साथ चलना पड़ा। अंत में, खिलाड़ियों को LBW के मामलों में तीन बार अपील करने का अधिकार देने का निर्णय हुआ। उस समय, यह एक बड़ा कदम था, क्योंकि पहली बार खिलाड़ियों को अंपायर के निर्णय पर सवाल उठाने का मौका मिला था।

इस प्रस्ताव को लेकर ICC के पारंपरिक और सुधारवादी धड़े के बीच एक संतुलन बना, और यह निर्णय चैंपियंस ट्रॉफी में इसे लागू करने की योजना के साथ आगे बढ़ा।

स्टीव बकनर का बयान: विवाद की शुरुआत

सभी चीजें सही दिशा में लग रही थीं, लेकिन अगले दिन, क्रिकेट जगत में हलचल मच गई। एक इंटरव्यू में, विश्व प्रसिद्ध अंपायर स्टीव बकनर ने एक बम गिराया। उन्होंने कहा, 

कई बार तकनीक का इस्तेमाल अंपायरों को नीचा दिखाने के लिए किया गया है। मैंने खुद देखा है कि कैसे मैचों को लंबा और रोमांचक बनाने के लिए तकनीक का दुरुपयोग हुआ।

बकनर के बयान ने ICC के लिए मुसीबत खड़ी कर दी। उन्होंने दावा किया कि ब्रॉडकास्टर्स ने मैचों के परिणामों को प्रभावित करने के लिए जानबूझकर रिप्ले छिपाए, गलत गेंदें दिखाई और LBW मामलों में हेरफेर किया।

बकनर का समर्थन और विरोध: एक नई लड़ाई की शुरुआत

बकनर के इस बयान के बाद क्रिकेट जगत में हलचल मच गई। कई ब्रॉडकास्टर्स और खेल विशेषज्ञ इस मुद्दे पर विभाजित हो गए। पीटर हटन, टेन स्पोर्ट्स के उपाध्यक्ष, ने बकनर के दावों को खारिज किया, लेकिन दूसरी तरफ, हर्षा भोगले जैसे विशेषज्ञों ने कहा कि टीवी प्रोड्यूसर मैच के परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं।

हालांकि, सबसे बड़ा मुद्दा यह था कि कोई भी अन्य अंपायर सार्वजनिक रूप से बकनर के खिलाफ बयान देने के लिए तैयार नहीं था। यह स्थिति और भी पेचीदा हो गई, क्योंकि यह माना जाने लगा कि अंपायरों के बीच मौन विरोध था, जो ICC के फैसलों के खिलाफ था।

ICC की प्रतिक्रिया: एक कदम पीछे

बकनर के बयान ने ICC के सुधारवादी एजेंडे पर भारी चोट पहुंचाई। चैंपियंस ट्रॉफी में DRS का उपयोग करने की योजना रद्द कर दी गई, और ICC ने इसे निचले स्तर के क्रिकेट में आजमाने का फैसला किया।

हालांकि, इसका कोई तात्कालिक प्रभाव नहीं दिखा। कोई भी देश या लीग इस प्रणाली को अपनाने के लिए तैयार नहीं था। यहां तक कि जब ECB ने इसे इंग्लिश काउंटी टूर्नामेंट में आजमाया, तो अंपायरों ने अपीलों को पलटने से इनकार कर दिया, जिससे यह प्रणाली विफल हो गई।

टेनिस से प्रेरणा

2007 में, ऑस्ट्रेलियन ओपन ने पहली बार टेनिस में हॉक-आई प्रणाली का इस्तेमाल किया। यह वही तकनीक थी, जिसे क्रिकेट में इस्तेमाल करने की योजना थी। जब इस प्रणाली की सफलता के आंकड़े सामने आए, तो ICC को एक नया अवसर मिला।

2008 की ICC वार्षिक बैठक में, DRS को ICC टूर्नामेंटों में लागू करने के लिए फिर से प्रस्तावित किया गया। लेकिन राष्ट्रीय बोर्डों को इसे अपनाने के लिए राजी करना मुश्किल था।

भारत का हस्तक्षेप: DRS का पहला अंतरराष्ट्रीय प्रयोग

यही वह समय था जब भारत ने DRS को आजमाने के लिए कदम बढ़ाया। भारत बनाम श्रीलंका टेस्ट सीरीज में पहली बार DRS का इस्तेमाल हुआ। लेकिन इसके कई तकनीकी खामियों और विवादों ने इसे और पेचीदा बना दिया।

तीन टेस्ट मैचों की इस सीरीज ने DRS की कमियों को उजागर किया, और इसके अंत तक, भारत ने DRS का कड़ा विरोध करना शुरू कर दिया। BCCI, जो उस समय सबसे शक्तिशाली बोर्ड था, ने DRS के खिलाफ खड़ा होकर इसे रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

हालांकि, DRS ने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन 2012 तक यह प्रणाली क्रिकेट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई। स्टीव बकनर का वह बयान, जिसने शुरुआत में इस प्रणाली पर संदेह जताया था, अंततः क्रिकेट में तकनीकी सुधारों के लिए एक उत्प्रेरक बन गया।यह कहानी DRS की है, जो एक छोटे से प्रस्ताव से शुरू हुई और एक बड़े विवाद का कारण बनी। तकनीक के इस्तेमाल ने क्रिकेट को बदल दिया, लेकिन इसकी शुरुआत उतनी आसान नहीं थी जितनी आज लगती है।

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