जानिए कैसे वेस्टइंडीज के महान बल्लेबाज सर विवियन रिचर्ड्स ने क्रिकेट की दुनिया पर राज किया, बिना हेलमेट के महान गेंदबाजों का सामना किया, और एक नई मिसाल कायम की।
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Toggleविवियन रिचर्ड्स से “सर” विवियन रिचर्ड्स बनने की कहानी
क्रिकेट के 150 साल पुराने इतिहास में कई महान बल्लेबाजों ने जन्म लिया, लेकिन जब बात आक्रामकता, आत्मविश्वास और साहस की आती है, तो एक नाम सबसे ऊपर आता है – विवियन रिचर्ड्स। वेस्टइंडीज के इस दिग्गज बल्लेबाज ने अपने अंदाज और खेल से लाखों दिल जीते। मैदान पर उनका आत्मविश्वास और गेंदबाजों को डराने वाली उनकी उपस्थिति उन्हें क्रिकेट इतिहास का सबसे अद्वितीय खिलाड़ी बनाती है।
शुरुआती जीवन और संघर्ष
7 मार्च 1952 को एंटीगुआ के सेंट जॉन्स में जन्मे विवियन रिचर्ड्स का बचपन साधारण था। उनके पिता मालकम रिचर्ड्स और उनकी माँ ग्रीनजर्सी दोनों ही खेलप्रेमी थे। रिचर्ड्स के बड़े भाई मर्विन और डोनाल्ड एंटीगुआ की प्रथम श्रेणी क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज थे। क्रिकेट से उनका प्यार बचपन से ही था, जब वे अपने परिवार के साथ खेलते थे। रिचर्ड्स का क्रिकेट सफर यहीं से शुरू हुआ, जब उन्होंने सेंट जॉन्स ग्रामर स्कूल में अपनी पढ़ाई पूरी करते हुए क्रिकेट में अपनी रुचि और जुनून को पाया।
इंग्लैंड से शुरू हुआ करियर
अपने क्रिकेट सपनों को पूरा करने के लिए रिचर्ड्स ने 1972 में लीवार्ड आइलैंड्स के लिए प्रथम श्रेणी क्रिकेट में डेब्यू किया। उनके अद्वितीय खेल कौशल ने जल्द ही इंग्लैंड के समरसेट काउंटी क्रिकेट क्लब का ध्यान खींचा, जहाँ से उनका असली अंतर्राष्ट्रीय करियर शुरू हुआ। इंग्लैंड के खिलाफ खेलते हुए उन्होंने अपनी बल्लेबाजी और फील्डिंग से सबको प्रभावित किया। 1974 में, समरसेट में बेनसन एंड हेजेज कप के एक मैच में उन्होंने इंग्लैंड के महान गेंदबाज इयान बॉथम के खिलाफ शानदार प्रदर्शन किया और मैन ऑफ द मैच बने।
अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कदम
1974 में भारत के खिलाफ बेंगलुरु के मैदान पर रिचर्ड्स ने अपना टेस्ट डेब्यू किया। हालांकि, वह मैच उनके लिए खास नहीं रहा, लेकिन 1975 में दिल्ली में खेलते हुए नाबाद 192 रनों की पारी ने दुनिया को बता दिया कि वेस्टइंडीज को एक नया क्रिकेट चैंपियन मिल गया है। उसी साल, वह 1975 के पहले वर्ल्ड कप के लिए चुने गए, जहाँ उन्होंने श्रीलंका के खिलाफ अपना पहला वनडे मैच खेला। इस विश्व कप के फाइनल में उनकी बेहतरीन फील्डिंग ने वेस्टइंडीज को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ऐतिहासिक जीत दिलाई।
1976: रिचर्ड्स का यादगार साल
1976 वह साल था जिसने विवियन रिचर्ड्स को क्रिकेट के इतिहास में अमर कर दिया। इस साल उन्होंने 90 की औसत से 1710 रन बनाए, जो तब तक एक रिकॉर्ड था। इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज़ में उन्होंने 829 रन बनाए, जिसमें ओवल के मैदान पर खेली गई 296 रनों की पारी उनकी टेस्ट करियर की सर्वश्रेष्ठ पारी मानी जाती है। इस अद्भुत प्रदर्शन ने उन्हें क्रिकेट के महान खिलाड़ियों में शुमार कर दिया।
एक महान कप्तान
विवियन रिचर्ड्स केवल एक महान बल्लेबाज ही नहीं, बल्कि एक सफल कप्तान भी थे। 1984 से 1991 तक, उन्होंने वेस्टइंडीज की कप्तानी की, और उनकी कप्तानी में टीम ने 50 में से 27 टेस्ट मैच जीते। उनकी कप्तानी में वेस्टइंडीज ने एक भी टेस्ट सीरीज़ नहीं हारी, जो उनकी रणनीति और नेतृत्व कौशल का प्रमाण है।
सन्यास और आत्मकथा
1991 में, विवियन रिचर्ड्स ने क्रिकेट से संन्यास लिया, लेकिन उनका क्रिकेट से रिश्ता कभी खत्म नहीं हुआ। वह एक सफल कमेंटेटर बने और 2013 के आईपीएल में दिल्ली डेयरडेविल्स के मेंटर की भूमिका भी निभाई। उनकी आत्मकथा “इट्स नॉट जस्ट क्रिकेट” में उन्होंने अपनी जीवन यात्रा को साझा किया। उनके व्यक्तिगत जीवन की बात करें तो वह फिल्म अभिनेत्री नीना गुप्ता के साथ रिश्ते में रहे और उनकी एक बेटी, मसाबा गुप्ता, प्रसिद्ध फैशन डिज़ाइनर हैं।
बिना हेलमेट के खेलते थे
विवियन रिचर्ड्स अपने जमाने के सबसे आक्रामक बल्लेबाज थे, और उनकी आक्रामकता का सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि उन्होंने कभी हेलमेट पहनकर बल्लेबाजी नहीं की। डेनिस लिली, इयान बॉथम, और वसीम अकरम जैसे दिग्गज गेंदबाजों के खिलाफ बिना हेलमेट के खेलना उनके आत्मविश्वास को दर्शाता है।
रिचर्ड्स का क्रिकेट में योगदान
विवियन रिचर्ड्स ने अपने क्रिकेट करियर में कई कीर्तिमान स्थापित किए। वह टेस्ट क्रिकेट में सबसे तेज़ शतक बनाने वाले बल्लेबाजों में से एक थे। उनकी 189 रनों की पारी, जो उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ खेली थी, वनडे क्रिकेट की सर्वश्रेष्ठ पारियों में से एक मानी जाती है। इस पारी में उन्होंने दसवें विकेट के लिए माइकल होल्डिंग के साथ 106 रनों की साझेदारी की थी, जो आज भी एक रिकॉर्ड है।